सभी सुखी हों सभी निरोगी, जीवन में आनन्द हो। स्नेहमृत अविरल छलकाएँ, शीतल, मन्द, सुगन्ध हो ।।ध्रु-।।
न में करुणा प्रेम सदा हो, मधुर योग्य व्यवहार करें भेदभाव जड़मूल हटाकर, एक नया विश्वास भरें धरती का हर छोर सँवारें, कहीं न कोई द्वन्द्व हों ।।1।।
निज कर्तव्य धर्म का पालन, दृढ़ता से करना है नित्य फल की चिन्ता में ना उलझें, करते जाएँ सुन्दर कृत्य नष्ट करे जो तिमिर जाल को, ऐसे सज्जन-वृंद हों ।।2।।
मेरे सब हैं मैं हूँ सबका, विराट चिन्तन सतत् चले वृक्ष बीज में, बीज वृक्ष में, परिपूरक सद्भाव पले प्राप्त करेंगे दिव्य धरोहर, जिसका आदि न अन्त हो ।।3।।
सहज भाव से निमित्त बनकर, हमें निरन्तर चलना है पुण्य दायिनी गंगा के हित, हिमशिखरों सम गलना है माँ-भारत के श्री चरणों में, जन्म हमारा धन्य हो ।।4।।
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