व्याख्यान विधि (Lecture Method) क्या है ? इसके लाभ , सीमाएँ , उपयोग , गुण एवम दोष - Param Himalaya

व्याख्यान विधि (Lecture Method) क्या है ? इसके लाभ , सीमाएँ , उपयोग एवम गुण दोष - Param Himalaya

व्याख्यान विधि (Lecture Method):

हमारे विद्यालय में सबसे अधिक इस शिक्षण विधि का उपयोग किया जाता है। यह शिक्षण विधि शिक्षक केन्द्रित होती है इसमें विद्यार्थी निष्क्रिय श्रोता होता है। कक्षा में पूरा नियंत्रण शिक्षक का ही होता है। शिक्षक बिना किसी श्रव्य दृश्य सहायक सामग्री के इस्तेमाल के शिक्षण कार्य सम्पन्न करता है। इस प्रकार का शिक्षण बहुत नीरस, उबाऊ और एक तरफा होता है, जिसमें विद्यार्थी ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता है।


व्याख्यान विधि के लाभ (Advantages of Lecture Method)-


1. इसमें पाठ्य वस्तु कम समय में अधिक मात्रा में प्रस्तुत की जा सकती है।

2. यदि शिक्षक विधिवत् ढंग से उच्च स्तर के विद्यार्थियों के लिए इसके द्वारा शिक्षण कराता है तब यह बहुत प्रभावशाली होती है।

3. इस विधि में शिक्षक स्वतंत्र होकर अपने तरीके से शिक्षण कार्य करता है इसलिए यह विधि बहुत सुविधाजनक और आसान होती है।


व्याख्यान विधि की सीमाएँ (Limitations of Lecture Method)-


1. इसमें विद्यार्थी की सहभागिता बिल्कुल नहीं होती है। विद्यार्थी सृजनात्मक नहीं हो पाते तथा शिक्षक के नियन्त्रण में रहते हैं।

2. यह शिक्षण विधि बहुत नौरस होती है, शिक्षक ही केवल सक्रिय रहता है।

3. इसमें विद्यार्थी के पूर्व ज्ञान को ध्यान में रखकर शिक्षक द्वारा कार्य नहीं कराया जाता है।

4. इसमें वैज्ञानिक कौशलों का विकास नहीं होता है।

5. शिक्षक को शिक्षण कार्य कराने के लिए पूर्व तैयारी में मेहनत अधिक करनी होती है।


उपयोग (Use) : उच्च स्तर की कक्षाओं के लिए यह विधि उपयोगी है।


गतिविधि (Activity): किसी एक प्रकरण पर 3-5 मिनट का व्याख्यान प्रस्तुत करें / व्याख्यान विधि से पढ़ाएँ।


व्याख्यान विधि के दोषों को ध्यान में रखते हुए इसे अधिक प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित प्रकार से परिवर्तन किए गए हैं-


(क) संशोधित व्याख्यान विधि (Revised Lecture Method):


व्याख्यान शिक्षण विधि को अधिक उपयोगी बनाने के लिए शिक्षक प्रशिक्षक विद्यार्थी में अन्तःक्रिया (TLI-Teacher- Learner Interaction) को सम्मिलित किया जा सकता है। अतः व्याख्यान के साथ (TLI-Teacher-Learner Interaction) और (TLM-Teaching Learning Material) को जोड़ने पर व्याख्यान विधि के कई दोषों को दूर किया जा सकता है और व्याख्यान को अधिक बेहतर बनाया जा सकता है। यदि प्रत्येक विद्यार्थी को प्रश्न पूछने के लिए भी साथ ही प्रेरित करें, तो यह विधि और अधिक कारगर सिद्ध हो सकती है। 


(ख) व्याख्यान प्रदर्शन विधि (Lecture Demostration Method):


व्याख्यान प्रदर्शन विधि में व्याख्यान और प्रदर्शन दोनों के लाम होते हैं। इस शिक्षण विधि का उपयोग विज्ञान, सामाजिक अध्ययन विषयों के शिक्षक अधिक करते हैं। छात्राध्यापक प्रदर्शन के द्वारा स्थूल अनुभव प्राप्त करता है। यदि प्रदर्शन-व्याख्यान में उचित दिशा में वाद-विवाद किया जाए, तो यह शिक्षण विधि बहुत प्रभावी होती है। इसको और अधिक प्रभावी बनाने के लिए छात्राध्यापक और सामग्री के नव्य अन्तःक्रिया बढ़ानी चाहिए। 


अतः व्याख्यान-प्रदर्शन विधि में चारों अन्तःक्रियाओं 

1. TLI (Teacher- Learner Interaction), 

2. LLI (Learner-Learner Interaction), 

3. TMI (Teacher-Material Interaction) तथा 

4. LMI (Learner- Material Interaction) को सम्मिलित करके बेहतर और प्रभावी बनाया जा सकता है।

TLI (Teacher-Learner Interaction) और LLI (Learner-Learner Interaction) व्याख्यान में सुधार करेगा, जबकि TMI (Teacher-Material Interaction), LMI (Learner- Material Interaction) प्रदर्शन में सुधार करता है।


व्याख्यान प्रदर्शन विधि के गुण (Merits of Lecture Demonstration Method)


1. इस शिक्षण विधि में समय और धन कम खर्च होता है, अतः यह विधि मितव्ययी है।

2. इसमें विद्यार्थियों को स्थूल वस्तु दिखाकर शिक्षण कराते हैं अतः यह मनोवैज्ञानिक आधार पर भी सही है। इसमें विद्यार्थी प्रदर्शन देखकर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सक्रियता से भाग लेता है, परिणामस्वरूप उसकी अपने विषय में रूचि पैदा होती है।

3. यह विधि विशेष रूप से उन परिस्थितियों में उपयोगी है जहाँ पर (1) उपकरण महंगे होते हैं या जल्दी टूटने की संभावना होती है। (2) जिन प्रयोगों में खतरा होता है। (3) जिन प्रयोगों में जटिल कार्य होते हैं। (4) जिन प्रयोगों में उपकरणों का प्रयोग विशेष तरीके से करना होता है।


व्याख्यान प्रदर्शन विधि के दोष (Demerits of Lecture Demonstration Method) -


1. व्याख्यान प्रदर्शन शिक्षण विधि 'करके सीखने के शिक्षा सूत्र पर आधारित नहीं होती है।


2. इसमें विद्यार्थी प्रयोग नहीं करता है. केवल शिक्षक के प्रयोग का निरीक्षण करता है। इस प्रकार वह प्रयोग सम्बन्धी कई अनुभवों से वंचित रहता है।

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