Notes : शैक्षिक तकनीकी ( Educational Technology ) - अर्थ, प्रकृति, प्रकार, आवश्यकता , उपयोग , घटक: nature, types, need and use

शैक्षिक तकनीकी ( Educational Technology ) - प्रकृति, प्रकार, आवश्यकता एवं उपयोग : nature, types, need and use : 

शैक्षिक तकनीक का अर्थ

जे०के० गालब्रेथ ने अपनी पुस्तक द न्यू इन्डस्ट्रियल स्टेट मे तकनीकी की दो मुख्य विशेषताये बतायी है वह है -

1. प्रयोगिक कार्यों मे वैज्ञानिक ज्ञान का क्रमबद्व प्रयोग और

2. प्रयोगिक कार्यों का भागों और उपभागों मे विभाजन शिक्षा के क्षेत्र मे कोई भी विषय जो इन दो विशेष्ताओं को रखता है शैक्षिक तकनीकी कहलाता है।

शैक्षिक तकनीकी शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए तकनीक का उपयोग है। यह सिर्फ कंप्यूटर या इंटरनेट तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सभी तरह के औजार, उपकरण और तरीके शामिल हैं जो शिक्षण को अधिक प्रभावी बनाते हैं।

शैक्षिक तकनीकी की प्रकृति : 

बहुमुखी: यह शिक्षण के हर स्तर पर लागू होती है, चाहे वो प्राथमिक स्कूल हो या उच्च शिक्षा संस्थान।

विकासशील: यह लगातार बदलती रहती है, क्योंकि नई तकनीकें आती रहती हैं।

व्यक्तिगत: यह हर छात्र की अलग-अलग जरूरतों के अनुसार शिक्षण को अनुकूलित करने में मदद करती है।

सक्रिय: यह छात्रों को सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करती है।

शैक्षिक तकनीकी के प्रकार : 

सॉफ्टवेयर: शिक्षण सॉफ्टवेयर, लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम, ऑनलाइन पाठ्यक्रम आदि।

हार्डवेयर: कंप्यूटर, टैबलेट, स्मार्टफोन, प्रोजेक्टर आदि।

इंटरनेट: वेबसाइट, ब्लॉग, ऑनलाइन फोरम, सोशल मीडिया आदि।

अन्य: वीडियो, ऑडियो, गेम, सिमुलेशन आदि।

शैक्षिक तकनीकी की आवश्यकता क्यों है?

 विविधता: छात्रों की सीखने की शैलियों में विविधता होती है, शैक्षिक तकनीकी हर छात्र तक पहुंचने में मदद करती है।

अधिक प्रभावी शिक्षण: यह शिक्षण को अधिक रोचक और इंटरैक्टिव बनाती है।

वैश्विक पहुंच: इंटरनेट के माध्यम से दुनिया भर के संसाधनों तक पहुंच आसान हो जाती है।

जीवन भर सीखना: यह छात्रों को स्वयं सीखने के लिए प्रेरित करती है।

शैक्षिक तकनीकी के उपयोग

शिक्षण सामग्री: पाठ्यपुस्तकों के अलावा, वीडियो, ऑडियो, इंटरैक्टिव मॉडल आदि का उपयोग किया जा सकता है।

असाइनमेंट और मूल्यांकन: ऑनलाइन असाइनमेंट, क्विज़ और परीक्षाएं ली जा सकती हैं।

संचार: शिक्षक और छात्रों के बीच, साथ ही साथ छात्रों के बीच संचार को बढ़ावा देती है।

व्यक्तिगत सीखना: छात्र अपनी गति से और अपनी रुचि के अनुसार सीख सकते हैं।

शैक्षिक तकनीक की परिभाषा :

राष्ट्रीय शैक्षिक तकनीकी परिषद ने शेक्षिक तकनीकी को परिभाषित मूल्यांकन है जिसके द्वारा मानव अधिगम प्रक्रिया मे सुधार किया जा सकें।

लेथ (Leith) ने शिक्षा तकनीक की व्यापक परिभाषा दी है उनके अनुसार" अधिगम तथा अधिगम परिस्थितियों के वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग जब शिक्षण तथा प्रशिक्षण को सुधारने तथा प्रभावशाली बनाने मे किया जाता है तब उसे शिक्षा तकनीकी कहते है।

तक्शी एकामाटो (Toksi Sokamato 1971) ने शैक्षिक तकनीकी वह व्यवहारिक या प्रयोगात्मक अध्ययन है जिसका उददेश्य कुछ आवश्यक तत्वों जैसे शैक्षिक उददेश्य, पाठ्य पुस्तक, शिक्षण सामग्री, शिक्षण विधि, वातावरण विधार्थियो व निर्देशकों का व्यवहार तथा उनके मध्य होने वाली अन्तः प्रक्रिया को नियंत्रित करके अधिक्तम शैक्षिक प्रभाव उत्पन्न करना है।

इस प्रक्रिया में शिक्षा के प्रदा प्रक्रिया और अदा पक्ष पर जोर दिया गया है।

शैक्षिक तकनीक की कार्यात्मक परिभाषा हेगन की परिभाषा कार्यात्मक परिभाषा कही जाती है। इसमे शैक्षिक तकनीकी के सैद्धान्तिक तथा व्यवहारिक दोनो ही पक्षों को समावेशित किया गया है। हेगन के अनुसार शैक्षिक तकनीक, शैक्षिक सिद्वान्त, एवं व्यवहार की वह शाखा है जो मुख्यतः सूचनाओं के उपयोग एवं योजनाओं से सम्बन्धित होती है और सीखने की प्रक्रिया को नियंत्रित रखती है।

1. विज्ञान शैक्षिक तकनीकी का आधारभूत विषय है -

2. शैक्षिक तकनीक, शिक्षा पर विज्ञान तथा तकनीकी के प्रभाव का अध्ययन करती है।

3. शैक्षिक तकनीकी मे व्यवहारिक पक्ष को महत्व दिया जाता है।

4. शैक्षिक तकनीकी निरन्तर प्रक्रिया का विकास करना है।

5. इसका उददेश्यक सिखने की प्रक्रिया का विकास करना है।

6. यह मनोविज्ञान, इंजियनरिंग आदि विज्ञानों से सहायता लेता हे।

7. इसमे क्रमबद्व उपागम (systematic approcach) को प्रदान की जाती है।

8. इसमें शिक्षक छात्र तथा तकनीकी प्रक्रियाऐ एक साथ समावेशित रहती है।

9. शैक्षिक तकनीकी के विकास के फलस्वरूप शिक्षण मे नवीन विधियों तथा नव शिक्षण तकनीकियों का प्रवेश हो रहा है।

10. यह शैक्षिक उददेश्यों की पूर्ति हेतु अधिगम परिस्थितियों मे आवश्यक परिवर्तन लाने मे समर्थ है।

11. शैक्षिक तकनीकी, शैक्षिक, आर्थिक, समाजिक तथा तकनीकी आवश्यक्ताओं के अनुरूप उपकरणों के निर्माण मे सहायता प्रदान करती है।

शैक्षिक तकनीकी की उपर्युक्त विवेचना के आधार पर शैक्षिक तकनीकी की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है।" शैक्षिक तकनीकी विज्ञान पर आधारित एक ऐसा विषय है जिसका उददेश्य शिक्षक, शिक्षण तथा छात्रो के कार्य का निरंतर सरल बनाया है। जिससे कि शिक्षा के ये तीनों अंग मिलकर भली भाति समायोजित रहे और अपने उददेश्यों की प्राप्ति मे क्रमबद्व उपागमों के माध्यम से सक्षम और समर्थ रहे। इस विषय के अन्तर्गत शिक्षा के अदा प्रदा तथा प्रक्रिया (input, output and process) तीनों ही पहलुओ को ध्यान में रखना चाहिये।

शैक्षिक तकनीक की विशेषताएं

1. इसमे शिक्षा के तीनों पक्ष अदा, प्रक्रिया तथा प्रदा समाहित है।

2. यह प्रभावी अधिगम के लिये विधि एवं तकनीकी के विकास पर जोर देती है।

3. यह शिक्षा एवं प्रशिक्षण मे वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग है।

4. यह अधिगम परिस्थितियों का संग्रह है जिसके द्वारा शैक्षिक उददेश्यों का प्राप्त किया जा सकता है।

5. यह अधिगम के परिणामों के परिक्षण के लिये उपकरणों के निर्माण पर जोर देता है।

6. यह वातावरण माध्यम तथा विधियों को नियंत्रित करके अधिगम को आगे बढती है।

शैक्षिक तकनीक के क्षेत्र

शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र इसकी अवधारणा के अनुरूप हैं। यदि हम शैक्षिक तकनीकी को श्रव्य दृश्य साधनों के रूप मे लेते है तो इसका क्षेत्र, शिक्षा मे केवल श्रव्य दृश्य साधनो तक ही सीमित रहता है। यदि शैक्षिक तकनीकी का तात्पर्य हम अभिगमित अध्ययन लेते है तो इसके क्षेत्र मे अभिकृमित अध्ययन की सामग्री ही आती है। आज शैक्षिक तकनीकी अभिकृमित श्रव्य दृश्य सामगी ही नही बल्कि ये तो इनके अंग माने जाने लगे है। शैक्षिक तकनीकी को एक व्यापक विज्ञान माना जाने लगा अतः इकसे क्षेत्र मे विशालता एवं विष्दता दृष्टिगोचर होती है।

डैरक रोन्ट्रा; (Derek Rowntra 1973) ने इसके निम्नांकित क्षेत्र बताये है। -

1. अधिनियम के लक्ष्ण तथा उद्देश्य चिन्हित करना।

2. अधिगम वातावरण का नियोजन करना।

3. विषय वस्तु की खोज करना तथा उन्हें संरचित करना।

4. उपयुक्त शिक्षण व्यूह रचनाओं तथा अधिगम संचार (leaning media) का चयन करना।

5. अधिगम व्यवस्था की प्रभाव शीलता का मूल्यांकन करना।

6. भविष्य में प्रभाव शीलता बताने के लिये मूल्यांकन के आधार पर वांछित सूझ-बूझ प्राप्त करना।

शैक्षिक तकनीक की उपयोगिताऐं

शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता आज दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विश्व का प्रत्येक देश इसे अपना रहा है। कोठारी कमीशन (1966) ने अपनी एक टिप्पणी में कक्षा- अध्ययन को फिर से जीवन दान देने या उसे अनुप्रमाणित करने की प्रविधियों पर काफी ध्यान दिया गया है।

अधिनियम सिद्धान्तों की जगह शिक्षा सिद्धान्तो को उचित महत्व प्रदान करने वाली विषयवस्तु शैक्षिक तकनीकी ही है। शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता को निम्नांकित भाँति अधिक सरलता से प्रस्तुत किया जा सकता है।


(1) शिक्षक के लिये उपयोगिताः शैक्षिक तकनीकी पर अधिकार रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के व्यवहारों का अध्ययन कर सकता है समझ सकता है और उनमें वांछित सुधार लाने का प्रयत्न कर सकता है। शिक्षक को विषयवस्तु के साथ-साथ व्यवहार अध्ययन कर व्यवहार सुधार की प्रणालियों का ज्ञान भी होना चाहिए। शैक्षिक तकनीकी इस क्षेत्र में शिक्षक को समर्थ बनाती है। शैक्षिक तकनीकी शिक्षक को शिक्षण उपागमों शिक्षण व्यूह रचनाओं में तथा शिक्षण विधियों के विषय में वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करती है।

शिक्षक अपनी शैक्षिक प्रशासन तथा प्रबन्ध से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन करने के लिये प्रणाली उपागम (system approach) का प्रयोग कर सकता है। वह कक्षा में व्यक्गित भिन्नताओं की समस्या के समाधान के रूप में अभिक्रमित अनुदेशन का उपयोग कर सकता है।

(2) सीखने के क्षेत्र में उपयोगिताः- शैक्षिक तकनीकी हमें सीखने की प्रभाव पूर्ण विधियों तथा सिद्धांतों का ज्ञान प्रदान करती है, सीखी हुई विषयवस्तु को स्थाई करने की विभिन्न प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है। शैक्षिक तकनीकी सीखने और सिखाने दोनों ही प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक विवेचना कर शिक्षण अधिगम व्यवस्था बनाये रखती है। शिक्षण के नये प्रतिमानों की देन शैक्षिक तकनीकी की ही है। जो हमें अधिगम और शिक्षण के स्वरूप को भलीभांति समझाते हैं। इस प्रकार शैक्षिक तकनीकी सीखने और सिखाने की प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली तथा सार्थक बनाने में शिक्षक तथा शिक्षार्थी एंव प्रशिक्षणार्थी सभी के लिये उपयोगी बनायी जा सकती है।

(3) समाज के लिये उपयोगिताः- गैरीसन (Garrison) आदि द्वारा शिक्षा-मनोविज्ञान के सन्दर्भ में कहे गय शब्द शैक्षिक तकनीकी पर भी लागू होते हैं- " We know in advacne if we are (educational technologiests), that certain methods will be wrong. Therefore they save us from mistake and clarifies human motives and this makes it possible to achieve understanding amon indivbiduaols and groups (teaching and learning)

समाज में आज जनसाधारण के पास जो रेडियों, ट्रांजिस्टर आदि की सुविधायें है, उनका उपयोग शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से शिक्षा क्षेत्र में किया जा सकता है। शैक्षिक तकनीकी, शिक्षकों और छात्रों तथा जनसाधारण के ज्ञानात्मक, प्रभाव तथा मनोगव्यात्मक पक्षों का उचित विकास करती है। सीमित संसाधन (resources) वाले देशों के लिये शैक्षिक तकनीक ऐसी प्रविधियों का वरदान देती है, जिनकी मदद से जन शिक्षा (man education) का प्रचार, प्रसार तथा विस्तार होता है।

अतः यह कहा जा सकता है कि शैक्षिक तकनीकी आज से तकनीकी युग मे शिक्षक की उपयोगिता बताती है। छात्रों छात्रों या छात्राध्यापकों को प्रभावशाली विधि से सिखायी जाती है और समाज के लिये ज्ञान के संचालन, प्रसार, प्रसार तथा विकास के लिये अत्यन्त उपयोगी है।

शैक्षिक तकनीक के घटक :

लुम्सडेन (1964) ने शैक्षिक तकनीकी के तीन घटक बताये है-

1. कठोरशिल्प तकनीकी

2. कोमलशिल्प तकनीकी

3. प्रणाली विश्लेषण

1.कठोरशिल्प तकनीकी (कठोर शिल्प उपागम)

1. कठोरशिल्प तकनीकी शिक्षा या दृश्य श्रव्य सामग्री के लिये कठोर शिल्प उपागम के रूप में जाना जाता है।

2. इसका उद्गम भौतिक विज्ञानों तथा यांत्रिकी के सिद्धान्तों का प्रशिक्षण में उपयोग से हुआ है।

3. यह अवधाराणा है कि मशीनी/यांत्रिक तकनीकी शिक्षण तकनीकी से काफी हद तक सम्बन्धित है। जब तक शिक्षण के क्षेत्र में टेपरिकार्डर, टी०वी०, प्रोजेक्टर जैसे उपकरण नहीं होंगे तब तक शिक्षा अधुरी ही रहेगी, कठोर शिल्प उपागम इन उपकरणों के अनिवार्य उपयोग की धारणा को बलशाली बनाता है।

4. मैरिलम निक्सन (1971) में भी शिक्षण तकनीकी को अनेक क्षेत्रों से सम्बन्धित माना है माना और कहा कि इसका कार्य व्यक्ति एवं समाज की शैक्षिक आवश्यकताओं की संतुष्टित करना है।

5. सिल्वरमैन (Silverman 1968) ने इसे एक और नया नाम सापेक्षिक तकनीकी (Relative Technology) दिया है।

6. डॉ0 रूहेला के शब्दों में- Education Technology refers to tools and hardwares such as teaching machines T.V. Lape recorders ect. which are used in inmehans कठोर शिल्प उपागम का सर्वप्रथम ए०ए० लुम्सडेन ने वर्णन किया था। इस उपागम को श्रेव्य दृश्य सामग्री भी कहा जाता है। इसने मशीनों की तकनीकी पर जोर है। इसका विश्वास है कि मशीन अनुदेशन (Instruction) का कार्य करती है और इसका सम्बन्ध अनुदेशन के ज्ञानात्क पक्ष से होता है। 

यह उपागम निम्नांकित तीन बातों पर विशेष बल देता है।

1. ज्ञान का संचय करना

2. ज्ञान का प्रसारण करना

3. ज्ञान का विस्तार करना

सिल्वर मेन (1968) ने कठोर शिल्प तकनीकी को 'सापेक्षक तकनीकी' कहा है। यह मांग और उपयोग की तकनीकी को बढ़ावा देता है। मशीन का प्रयोग शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया में किया जाता है।

2. कोमल शिल्प तकनीक (कोमल शिल्प उपागम Software Approach)

1. यह शैक्षिक तकनीकी कोमलशिल्प उपागम के रूप में जानी जाती है। इसमें मशीनों का प्रयोग न करके इसमें शिक्षण एवं अधिगम के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है जिससे कि छात्रों में अपेक्षित परिवर्तन लाया जा सके।

2. इस उपागम वाली तकनीकियों को अनुदेशन तकनीकी शिक्षण तकनीकी की तथा व्यवहार तकनीकी का नाम भी दिया जाता है।

3. इसका उदगम व्यवहारिक विज्ञानों से हुआ है। इसमें मशीनों का प्रयोग केवल पाठ्य वस्तु के प्रस्तुतिकरण को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये किया जा सकता है।

4. इस तकनीकी में शिक्षा के अदा, प्रक्रिया और प्रदा तीनों पक्षों के विकास पर बल दिया जाता है। 5. आर्थर मेल्टन (1959) के अनुसार यह शैक्षिक तकनीकी सीखने के मनोविज्ञान पर जायरित है और यह अनुभव प्रदान करके वांछित व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया का शुभारम्भ करता है।

डेविस (1971) "शिक्षा प्रौद्योगिकी का यह दृष्टिकोण क्रमादेशित शिक्षा के आधुनिक सिद्धांतों के साथ निकटता से मेल खाता है और कार्य विश्लेषण, सटीक उद्देश्य लिखना, सही प्रतिक्रियाओं का चयन और निरंतर मूल्यांकन द्वारा इसकी विशेषता है।"

6. बहुत से शिक्षा विद्ध इस उपागम को हाईवेयर उपागम की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण बताते हैं क्योंकि हार्डवेयर उपागम तब तक अनुपयोगी है जब तक इसमें सोफ्टवेयर उपागम का प्रयोग न किया जाये।

7. कोमलशिल्प (सोफ्टवेयर) उपागम का उदभव स्किनर तथा अन्य व्यवहार-शास्त्रियों के प्रयासों के परिणाम स्वरूप हुआ है यह उपागम अधिगम के विज्ञान से सीधे सम्बन्धित है जो अनुभव के आधार पर व्यवहारिक परिवर्तनों को समावेशित करता है।

3. प्रणाली उपागम (System Analysis)

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक नवीन प्रबन्ध तकनीकी (Management Techonlogy) का विकास हुआ है। जिसने प्रबन्ध, प्रशासन, व्यापार, उद्योग तथा सेना सम्बन्धी समस्याओं के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिये वैज्ञानिक आधार प्रदान किया है। इस विचार धारा को शिक्षा में निर्णय लेने के लिये वैज्ञानिक आधार प्रदान किया है। इस विचारधरा को शिक्षा में प्रणाली विश्लेषण का नाम दिया गया। कुछ लोग इसे शैक्षिक प्रबन्ध का नाम भी दिया।

1. इसके अन्तर्गत शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबन्ध की समस्याओं का अध्ययन वैज्ञानिक तथा परिमाणात्मका ढंग से किया जाता है।

2. यह प्रणाली गणित पर आधारित है इस तकनीकी ने शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबन्ध को एक वैज्ञानिक एवं संख्यात्मक उपागम प्रदान किया है जो अधिक वस्तुनिष्ठ क्रमबद्ध तथा शुद्ध माना जाता है।

3. इसकी सहायता से शिक्षा प्रणाली की समस्यओं का चयन किया जाता है और वैज्ञानिक विधियों की सहायता से उनका खोजा जाता है।

4. शैक्षिक तकनीकी उपागम प्प्प् वास्तव में गैस्टाल्टवादी मनोविज्ञान के सिद्धान्तों पर आधारित है। 

इसके अनुसार शैक्षिक व्यवस्था या शैक्षिक प्रणाली के चार प्रमुख तत्व हैं-

1. अदा (Input) वे सभी व्यवहार या क्षमताऐं जो किसी शैक्षिक व्यवस्था में शिक्षण कार्य शुरू करते समय शिक्षक एवं छात्रों के माध्यम से मिलती है। 

2. प्रक्रिया (Process) वे सभी कार्य जिनकी मद्द से अदा या उपलब्ध व्यवहारों में परिवर्तन किया जाता है। 

3. प्रदा (Output) से तात्पर्य उस व्यवहार से है जिसे प्राप्त करने के लिये प्रणाली को निर्मित किया जाता है।

4. पर्यावरण सन्दर्भ - पर्यावरण के उन तत्वों को कहा जाता है जिनसे यह प्रणाली प्रभावित होती है।

निष्कर्ष:

शैक्षिक तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति ला रही है। यह शिक्षण को अधिक प्रभावी, रोचक और सुलभ बना रही है। भविष्य में, शैक्षिक तकनीकी का और अधिक विकास होगा और यह शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी।

अधिक जानकारी के लिए आप निम्नलिखित संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं:

 * Google Scholar: शैक्षिक तकनीकी पर शोध पत्र खोजने के लिए।

 * YouTube: शैक्षिक वीडियो देखने के लिए।

 * EdTech Blogs: नवीनतम रुझानों के बारे में जानने के लिए।

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