आओ फिर से दिया जलाएँ ( Aao Fir Se Diye Jalaye ) - अटल बिहारी वाजपेयी Atal bihari vajpayee

आओ फिर से दिया जलाएँ ( Aao Fir Se Diye Jalaye ) - अटल बिहारी वाजपेयी Atal bihari vajpayee

भावार्थ - आओ फिर से दिया जलाएँ ( Aao Fir Se Diye Jalaye ) - अटल बिहारी वाजपेयी Atal bihari vajpayee 

यह कविता अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा लिखी गई है। इस कविता में, कवि ने जीवन में आने वाली कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कहा है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर रहना चाहिए।

आओ फिर से दिया जलाएँ

भरी दुपहरी में अँधियारा

सूरज परछाईं से हारा

अंतरतम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल

लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल

वतर्मान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

आहुति बाक़ी यज्ञ अधूरा

अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

यह कविता अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा लिखी गई है। इस कविता में, कवि ने जीवन में आने वाली कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कहा है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर रहना चाहिए।

कविता का भावार्थ इस प्रकार है:

 * भरी दुपहरी में अंधियारा, सूरज परछाईं से हारा: इस पंक्ति में, कवि ने जीवन में आने वाली कठिनाइयों की तुलना भरी दोपहर में छाए अंधेरे से की है। उन्होंने कहा है कि कभी-कभी हमें ऐसा लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया है, लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए।

 * अंतरतम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएँ, आओ फिर से दिया जलाएँ: इन पंक्तियों में, कवि ने हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानने और फिर से प्रयास करने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कहा है कि हमें अपनी आशाओं को कभी भी मरने नहीं देना चाहिए।

 * हम पड़ाव को समझे मंज़िल, लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल, वतर्मान के मोहजाल में, आने वाला कल न भुलाएँ, आओ फिर से दिया जलाएँ: इन पंक्तियों में, कवि ने हमें याद दिलाया है कि हमें अपने लक्ष्यों को कभी भी नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा है कि हमें वर्तमान की कठिनाइयों से निराश नहीं होना चाहिए और हमेशा अपने भविष्य के लिए प्रयास करना चाहिए।

 * आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा, अंतिम जय का वज्र बनाने, नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ, आओ फिर से दिया जलाएँ: इन पंक्तियों में, कवि ने हमें याद दिलाया है कि हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बलिदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा है कि हमें अपने देश और समाज के लिए काम करना चाहिए।

कविता का संदेश यह है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर रहना चाहिए। हमें अपनी आशाओं को कभी भी मरने नहीं देना चाहिए और हमेशा अपने भविष्य के लिए प्रयास करना 

चाहिए।


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