सपना टूट गया Sapna tut gya - अटल बिहारी वाजपेयी कविता Atal bihari Vajpayee Poem- Param Himalaya
"सपना टूट गया" अटल बिहारी वाजपेयी जी की एक प्रसिद्ध कविता है जो उनके गहरे विचारों और भावनाओं को दर्शाती है। यह कविता निराशा, आशा और जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को व्यक्त करती है।
कविता के बोल:
हाथों की हल्दी है पीली,
पैरों की मेहंदी कुछ गीली,
पलक झपकने से पहले ही,
सपना टूट गया।
दीप बुझाया रची दीवाली,
लेकिन कटी न मावस काली,
व्यर्थ हुआ आवाहन,
स्वर्ण सबेरा रूठ गया,
सपना टूट गया।
नियति नटी की लीला न्यारी,
सब कुछ स्वाहा की तैयारी,
अभी चला दो कदम कारवाँ,
साथी छूट गया,
सपना टूट गया।
कविता का भावार्थ:
यह कविता जीवन की क्षणभंगुरता और अनिश्चितता को दर्शाती है। वाजपेयी जी ने इसमें जीवन के उतार-चढ़ाव, आशा-निराशा और सपनों के टूटने का वर्णन किया है।
* सपनों का टूटना: कविता में सपनों के टूटने का जिक्र है, जो जीवन में आने वाली निराशाओं का प्रतीक है।
* जीवन की अनिश्चितता: यह कविता जीवन की अनिश्चितता और क्षणभंगुरता को भी दर्शाती है।
* आशा और निराशा: कविता में आशा और निराशा दोनों का मिश्रण है, जो जीवन के प्रति वाजपेयी जी के संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है।
* नियति की लीला: कविता में नियति की लीला का जिक्र है, जो जीवन में होने वाली घटनाओं पर हमारे नियंत्रण की कमी को दर्शाता है।
अटल बिहारी वाजपेयी जी की यह कविता हमें जीवन की वास्तविकता को स्वीकार करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
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