कविता : रोते-रोते रात सो गई Rote Rote Raat So Gayi अटल बिहारी वाजपेयी Atal Bihari Vajpayee
यह कविता अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा लिखी गई है। इस कविता में, कवि ने एक रात की पीड़ा और विरह का वर्णन किया है।
रोते-रोते रात सो गई
झुकी न अलकें
झपी न पलकें
सुधियों की बारात खो गई
दर्द पुराना
मीत न जाना
बातों ही में प्रात हो गई
घुमड़ी बदली
बूँद न निकली
बिछुड़न ऐसी व्यथा बो गई
रोते-रोते रात सो गई
कविता का भावार्थ इस प्रकार है:
* रोते-रोते रात सो गई, झुकी न अलकें, झपी न पलकें, सुधियों की बारात खो गई: इन पंक्तियों में, कवि कहते हैं कि रात रोते-रोते बीत गई, लेकिन आँखों से नींद गायब थी। यादों की बारात खो गई, यानी पुरानी यादें मन में उलझ गईं।
* दर्द पुराना, मीत न जाना, बातों ही में प्रात हो गई: इन पंक्तियों में, कवि पुराने दर्द की बात करते हैं, जो उनके साथी को भी नहीं पता। पूरी रात बातों में ही बीत गई और सुबह हो गई।
* घुमड़ी बदली, बूँद न निकली, बिछुड़न ऐसी व्यथा बो गई: इन पंक्तियों में, कवि कहते हैं कि बादल घिरे, लेकिन बारिश नहीं हुई। यह बिछुड़न ऐसी पीड़ा दे गई, जो मन में गहरी व्यथा बो गई।
कविता का संदेश यह है कि विरह और पीड़ा की रात कितनी लंबी और कष्टदायक होती है। यह कविता भावनाओं की गहराई को दर्शाती है और विरह की पीड़ा को व्यक्त करती है।
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