कविता : लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती , Lahron se Dar Kar Nauka Paar Nahi Hoti - Poem - Param Himalaya

कविता : लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती , Lahron se Dar Kar Nauka Paar Nahi Hoti - Poem - Param Himalaya

सोहनलाल द्विवेदी जी की पूरी कविता Hindi Poem- Lahron se Dar Kar Nauka Paar Nahi Hoti -लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती

सोहनलाल द्विवेदी जी की पूरी कविता इस प्रकार है:

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,

चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,

चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।

आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,

जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।

मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में,

बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।

मुट्ठी उसकी हर बार खाली नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो,

क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।

जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,

संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम।

कुछ किए बिना ही जय जय कार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

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